शिक्षा जगत में इन दिनों एक बड़ा संवेदनशील मामला गरमाया हुआ है। देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) ने शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) को लेकर एक ऐतिहासित निर्णय सुनाया है, जिसका सीधा असर लगभग 51 लाख शिक्षकों पर हो सकता है। इस फैसले ने शिक्षा प्रणाली, शिक्षक समुदाय और राज्य सरकारों के बीच नई जटिलताओं को जन्म दे दिया है।

(TET Exam Latest Update)सुप्रीम कोर्ट का आदेश — क्या कहा गया?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने वाले सेवा में उपस्थित सभी शिक्षकों को अगले दो वर्षों के अंदर TET परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य होगा।
उन शिक्षकों को जिनकी सेवा अवधि (सेवानिवृत्ति तक) 5 वर्ष से कम बची है, उन्हें इस अनिवार्यता से छूट दी जाएगी। लेकिन ध्यान दें — इस छूट का अर्थ है कि वे प्रमोशन की पात्रता नहीं पायेंगे।
पुरानी नियुक्ति (विशेषकर RTE कानून लागू होने के पहले की नियुक्ति) वाले शिक्षकों पर भी यह आदेश लागू होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय लिया है कि अनुभव या लंबे सेवा-काल को
हालांकि, माइनॉरिटी (अल्पसंख्यक) स्कूलों को लेकर प्रश्न खड़े हैं — क्या उन्हें भी इस आदेश के दायरे में लाया जाना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय को बड़े बेंच को सौंपा है।
TET की अनिवार्यता
TET (Teacher Eligibility Test) शिक्षकों की भर्ती में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य परीक्षा है। इसका उद्देश्य यह देखना होता है कि अभ्यर्थी में प्राथमिक या उच्च प्राथमिक स्तर पर पढ़ाने की योग्यता और आवश्यक शिक्षण कौशल है या नहीं। केंद्र और राज्य सरकारें इसे शिक्षक नियुक्ति की मूल शर्त मानती हैं। बिना TET पास किए उम्मीदवार किसी भी सरकारी स्कूल में स्थायी शिक्षक पद पर नियुक्त नहीं हो सकता। यह परीक्षा शिक्षा की गुणवत्ता, पारदर्शिता और शिक्षक चयन प्रक्रिया में समानता बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
51 लाख शिक्षक — आंकड़ा कहाँ से आ रहा है?
उन मीडिया रिपोर्टों एवं ब्लॉगों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के दायरे में देशभर में लगभग 51 लाख शिक्षक आते हैं — अर्थात् वे शिक्षक जो अभी तक TET नहीं पास किए हैं, और जिनकी सेवा अवधि दो वर्ष या उससे अधिक बची है। यह संख्या किसी एक स्रोत से प्रमाणित नहीं है लेकिन व्यापक रिपोर्टों और मीडिया विश्लेषणों में यह आकड़ा सामने आता रहा है।
इस फैसले का प्रभाव — अवसर या चुनौती?
चुनौतियाँ:
- नौकरी पर अनिश्चितता — जो शिक्षक कोर्ट के आदेशानुसार TET पास नहीं कर पायेंगे, उन्हें नौकरी गंवाने या अनिवार्य सेवानिवृत्ति का सामना करना पड़ सकता है।
- प्रमोशन व कैरियर विकास सीमित — 5 वर्ष से कम सेवा बची शिक्षकों को जहां छूट दी गयी, वहीं उन्हें प्रमोशन का लाभ नहीं मिलेगा।
- राज्य शिक्षा तंत्र पर दबाव — इतने बड़े पैमाने पर परीक्षा का आयोजन, परिणामों की निगरानी, अपील प्रक्रिया आदि — ये प्रशासनिक चुनौतियाँ होंगी।
- शिक्षक समुदाय की नाराजगी — कई राज्यों में शिक्षक संघ और शिक्षक विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं।
संभावित अवसर:
- शिक्षण गुणवत्ता में सुधार — यदि सभी शिक्षक न्यूनतम योग्यता (TET) पास करते हैं, तो शैक्षिक स्तर और अध्यापन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
- नौकरी प्रक्रिया में पारदर्शिता — भर्ती और प्रमोशन में “योग्यता + परीक्षा” का मानदंड लागू होने से प्राथमिकताएं स्पष्ट होंगी।
- घटती भेदभाव व असमानताएँ — निजी स्कूलों या राज्य-स्तर पर अनियमित फैसलों को नियंत्रित करने में यह निर्णय सहायक हो सकता है।
राज्यों और सरकार की प्रतिक्रिया
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस फैसले के विरोध में रिवीजन याचिका दाखिल करने का निर्णय लिया है।
कई राज्य (केरल, तमिलनाडु आदि) ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर समीक्षा याचिका (review petition) दायर करने की तैयारी कर ली है।
केन्द्र और राज्य सरकारें शिक्षक संघों से वार्ता कर राहत उपायों पर विचार कर रही हैं, ताकि अचानक इस बदलाव का शिक्षकों पर अत्यधिक दबाव न पड़े।
TET पर सरकार का पक्ष
सरकार का मानना है कि TET (Teacher Eligibility Test) शिक्षकों की गुणवत्ता और शिक्षा के स्तर को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है। सरकार का पक्ष यह है कि देश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तभी संभव है जब स्कूलों में योग्य और प्रशिक्षित शिक्षक नियुक्त हों। TET को लागू कर सरकार ने शिक्षण पेशे को एक मानक रूप देने की कोशिश की है, ताकि सिर्फ वही अभ्यर्थी शिक्षक बनें जिनके पास पर्याप्त ज्ञान और शिक्षण कौशल हो। इसके माध्यम से शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता, समान अवसर और गुणवत्ता का समावेश सुनिश्चित किया जा सके — यही सरकार का मुख्य उद्देश्य है।
TET पर अभ्यार्थियों का पक्ष
अभ्यर्थियों का मानना है कि TET परीक्षा उनकी योग्यता का आकलन करने का एक जरिया तो है, लेकिन इसमें कई व्यवहारिक चुनौतियाँ हैं। उनका पक्ष है कि पहले से प्रशिक्षित या बी.एड./डी.एल.एड. जैसे कोर्स करने वाले उम्मीदवारों के लिए फिर से एक अतिरिक्त परीक्षा देना अनुचित है। कई अभ्यर्थियों का कहना है कि TET पास करने के बाद भी नौकरी की गारंटी नहीं होती, जिससे युवाओं में निराशा बढ़ती है। उनका यह भी तर्क है कि परीक्षा का स्तर कभी-कभी असंगत होता है और बार-बार आयोजित न होने से अवसर सीमित हो जाते हैं। इसलिए अभ्यर्थी चाहते हैं कि प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जाए।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय शिक्षा तंत्र में एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। जहाँ यह कदम शिक्षक गुणवत्ता और शिक्षा स्तर को ऊँचा उठाने की दिशा में है, वहीं लाखों शिक्षकों की नौकरी-सुरक्षा, मानसिक तनाव और भविष्य की अनिश्चितता की चुनौतियाँ भी सामने आई हैं। 51 लाख से अधिक शिक्षक इस निर्णय के दायरे में हैं, और अब उन्हें तैयारी करनी होगी — यदि वे शिक्षा के क्षेत्र में बने रहना चाहते हैं।


